नई दिल्ली, (हि.स.)। देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बावजदू हर साल लाखों नौनिहाल पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। स्कूल से छूटे इन बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रशासन अनेक दावे कर रहे है लेकिन केंद्र सरकार उनकी प्रगति से संतुष्ट नहीं है। सरकार इन अभियानों को केवल कागजों तक सीमित न रखकर इन्हें जमीन पर उतारने के लिए विशेष रणनीति तैयार कर रही है।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार, सरकार सितम्बर में स्कूल ड्रॉप आउट बच्चों की वापसी के लिए विशेष अभियान चलाएगी। उन्होंने कहा कि हालांकि अभी फाइनल नहीं हुआ है लेकिन अभी सितम्बर में इसे शुरू करने पर विचार कर रहे हैं। इस अभियान में पारदर्शिता लाने के लिए विशेष निगरानी की भी योजना पर विचार चल रहा है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर शैक्षणिक सत्र शुरू होने पर शुरुआती दो माह तक खासकर ग्रामीण इलाकों में स्कूलों में बच्चों की दाखिला प्रक्रिया चलती रहती है। इसके बाद कौन बचा है यह ढूंढने के लिए एक मुहिम चलानी पड़ती है। उन्होंने कहा कि वह अधिकांश देखा गया है कि वह केवल कागजों तक ही सीमित होती है लेकिन इसे जमीनी स्तर पर करने के लिए हम विशेष योजना बना रहे हैं।
जावड़ेकर ने इस मामले में गुजरात की सराहना करते हुए कहा कि वहां ऐसे बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने में गांव के लोगों, सामाजिक संगठनों, जनप्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों ने तालमेल के साथ काम किया और इसके बेहतर परिणाम भी देखने को मिले।
उल्लेखनीय है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012-13, 2013-14 और 2014-15 में औसत 4.38 प्रतिशत छात्र-छात्राओं ने प्राइमरी स्तर पर ही स्कूल छोड़ दिया। वहीं इस तीन साल की अवधि में उच्च प्राथमिक स्तर पर यह औसत 3.64 प्रतिशत रहा और सेकेंडरी स्तर पर यह औसत 16.48 प्रतिशत रहा। सरकार के सर्वे के अनुसार पढ़ाई बीच में ही छोड़ने के कारणों में गरीबी व आर्थिक कारण, बच्चों की शिक्षा के प्रति अरूचि, दिव्यांगता और बेहतर स्वास्थ्य का न होना, छात्र का अन्य सहपाठियों से अधिक आयु का होना, घरेलू काम में बच्चे का सहयोग करना और परिवार में शिक्षा के महत्व को तवज्जो नहीं दिया जाना आदि शामिल है।