राजगीर ( बिहार ) ( ही स )। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने धर्मा और धम्मा को एक दूसरे का पर्याय बताते हुए कहा कि विभिन्न सभ्यताओं के सांमजस्य का श्रोत रहे धर्मा-धम्मा और बुद्ध की शिक्षा के कारण भारत का वाणिज्यिक संबंध दक्षिण और पूर्वी एशियाई देशों के साथ स्थापित हुआ जिससे भारतीय सभ्यताओं का विदेशों में प्रसार हुआ।
बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में तीन दिवसीय चौथे अंतरराष्ट्रीय धर्मा-धम्म सम्मेलन का गुरुवार को उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यहाँ कहा कि धर्मा और धम्मा एक ही है, संस्कृत में धर्मा और पालि में धम्मा कहा जाता है। उन्होंने कहा कि धर्मा-धम्मा विभिन्न सभ्यताओं के सांमजस्य का स्त्रोत रहा है। धर्मा और धम्मा के कारण ही 2500 वर्षों के इतिहास में भारत का वाणिज्यिक संबंध दक्षिण और पूर्वी एशियाई देशों के साथ स्थापित हो सका1 यही धर्मा और धम्मा भारतीय सभ्यताओं के प्रसार का भी स्त्रोत भी बना।
उन्होंने कहा कि दुनियां की आधी से अधिक आबादी का महात्मा बुद्ध की शिक्षा के प्रति झुकाव इसका जीता जागता प्रमाण है। उन्होंने कहा कि यह बुद्ध की शिक्षा ही थी जिससे कलांतर में भारत के संबंध दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ और प्रगाढ़ हुए।
राजगीर के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बिहार के जिस हिस्से में राजगीर आता है, वह कभी मगध साम्राज्य का हिस्सा था। उन्होंने कहा कि महात्मा बुद्ध के इस मगध प्रांत भ्रमण और विश्राम के दौरान उनके शिष्यों और अनुयायियों ने मठो का निर्माण किया जो कालान्तर में विहार के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
राष्ट्रपति ने कहा कि जनवरी माह में भारत एशियान देशों के साथ अपने डायलॉग का 25 वां वर्षगांठ मना रहा है और एशियान देशों के 10 राष्ट्राध्यक्ष इस गणतंत्र दिवस पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे।
धर्मा-धम्म सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्रीलंका के विदेश मंत्री तिलकमारापाना ने कहा कि श्रीलंका धर्मा-धम्मा से प्रभावित रहा है। जितना महात्मा बुंद्ध का इतिहास जितना पुराना है उतना ही श्रीलंका का इतिहास भी पुराना है। उन्होंने कहा कि बौध परम्परा में 10 बातों का बुद्धमत – सिद्धांत है जिनपर श्रीलंका अम्ल कर रहा हिया। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध के प्रेम, करूणा, मैत्री, शांति जैसे 10 सिद्धांतों पर चलकर पूरी दुनिया में अमन कायम किया जा सकता है।