नई दिल्ली, (हि.स.)। ट्रैंक्विल त्रिलोग्स नामक अनूठी चित्रकला प्रदर्शनी सोमवार को यहां इंडिया हैबिटैट सेंटर में शुरू होगी। इस चार दिवसीय प्रदर्शनी में वरिष्ठ कलाकारों के कार्यों को प्रतिदिन सुबह 10 बजे से सायं 8 बजे तक कन्वेंशन सेंटर लॉबी की दीवारों पर निःशुल्क देखा जा सकेगा। प्रदर्शनी में नीरा डावर, निवेदिता पांडे और रेणुका सोंधी गुलाटी की कला का प्रदर्शन होगा।
हम कलाकारों के बारे में बहुत कुछ सुनते रहे हैं लेकिन ये प्रदर्शनी तीन बोल्ड महिलाओं के बारे में है जिन्होंने सभी बाधाओं के होते हुए भी, अपनी आत्मा को सुनना और जिस रास्ते पर जाना चाहती थीं उस पर चलना पसंद किया। कला की दुनिया में प्रवेश करना किसी भी तरह से आसान नहीं है और खुद को स्थापित करना तो और भी कठिन है। लेकिन यहां हमारे पास नीरा डावर थीं जो भारत के महान समकालीन कलाकारों में से एक थीं। वे अपनी विस्फोटक रगों की रंगीन पेंटिंग के लिए जानी जाती थीं जो अब इस संसार से पार जा चुकी हैं और उनकी कला ही उनकी आवाज़ में बोलती है। कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद आख़री दिनों तक उन्होंने कला को नहीं छोड़ा ।
इसी तरह हमारे पास निवेदिता पांडे भी हैं, जो व्यंग्यपूर्ण हास्य को ऐसे परिदृश्य में सशक्त बनाती हैं जहां अर्थ चित्रों में ही छुपे होते हैं, जिससे दर्शकों को अर्थ ढूंढने की उस यात्रा पर ध्यान देने और अनुभव करने का मौका मिलता है।
इस प्रदर्शनी में रेणुका सोंधी गुलाटी भी मौजूद है, जिनका अस्तित्व ही चित्र कला और मूर्ती कला है जिसके माध्यम से वह अपने आप को जीवित कर लेती हैं । उसकी रचनाएं जन्म से मृत्यु तक एक महिला की यात्रा को जीवंत करती हैं, जीवन के सभी दुखों से गुजर रही और परिपक्व होने के सभी आनंदों को महसूस कराती हैं।
इन चित्र कलाओं में, रिक्त स्थानों के बीच जोरदार बातचीत, सामाजिक-आर्थिक बलों द्वारा महिलाओं के तकनीकी और भावनात्मक प्रस्तुतिकरण पर आलोचना, आत्मसमर्पण की बाहरी रिक्तियां और चिंतन एवं सुलह के आंतरिक संस्मरण हम देख सकते हैं।
ऐसा लगता है की रेणुका खुद से प्रयोग करने और खुद को फिर से ढूंढने और आविष्कार करने में विश्वास रखती हैं। निवेदिता का मानवीय स्थिति की संवेदनशीलता और सहिष्णु अनुग्रह, जिसके साथ वह उसके साथ काम करती है, आज भारतीय समकालीन कला दृश्य में एक महत्वपूर्ण बातचीत के तौर पर उभरता है । नीरा दवार जी 40 से अधिक वर्षों से दिल्ली में समकालीन कला का एक केंद्रीय आकृति थीं। उनके पास एक मजबूत दृष्टि थी और वह नाटकीय रूप से विविध रूपों को चित्रित किया करती थीं जो कि सीधे उनके दिल से उभरता था ...
दिल्ली शहर इन वरिष्ठ कलाकारों के कार्यों को कन्वेंशन सेंटर लॉबी की दीवारों पर पाकर भाग्यशाली है। और यदि कोई कला को सुनना चाहता है तो वह सुन सकता है क्योंकि चित्र तो बातें करेंगे ही ... प्रत्येक पेंटिंग के पीछे एक कहानी और एक शक्ति है जिसे महसूस किया जा सकता है पर बिना ग्रहण किये अपने में सम्मिलित नहीं किया जा सकता है ।