बोकारो, (हि.स.)। देश के राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) यूपीए (संप्रग) की उम्मीदवार मीरा कुमार का समर्थन करेगा। मोर्चा के सुप्रीमो एवं राज्य सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने शनिवार सुबह बोकारो निवास में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में उक्त घोषणा की। उन्होंने कहा कि इस पद के लिए दो-दो उम्मीदवार खड़े हो गये हैं। एनडीए समर्थित उम्मीदवार रामनाथ कोविद और यूपीए प्रत्याशी मीरा कुमार। इन दोनों की योग्यता का तुलनात्मक आकलन करना कठिन है, परंतु झारखंड राज्य के मौजूदा हालात और सरकार के जनविरोधी कार्यों को देखते हुए ही झाविमो ने कोविद के बजाय मीरा कुमार को समर्थन देने का निर्णय लिया है।
बाबूलाल ने कहा कि विशुद्ध रूप से कारपोरेट घरानों की जो भाजपा सरकार कुछेक लोगों को लाभ पहुंचाने के लिये जनता की तकलीफों, उनकी सुविधा को सुनना नहीं चाहती, उसके प्रत्याशी को अच्छा होने के बावजूद हम अपना सहयोग नहीं दे सकते। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यद्यपि नीतीश कुमार ने कोविद का समर्थन किया था, परंतु झाविमो मीरा कुमार का ही समर्थन करेगा और इससे जदयू के साथ गंठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।
'झारखंड को उजाड़ने पर लगी है बेईमान भाजपा'
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि भाजपा झारखंड को उजाड़ने में लगी है। अपने अधिकार के लिए किए जा रहे आंदोलनों को कुचला जा रहा। लोगों की जान ली जा रही है। आंदोलन के नेतृत्वकर्ता जेल भेजे जा रहे हैं। बस कुछेक लोगों के हित की पूर्ति में सरकार के सभी नुमाइंदे लगे हैं तो जनता विरोध में सड़क पर आयेगी ही। उन्होंने बोकारो के नया मोड़ से बस पड़ाव को हटाकर आईटीआई मोड़ किये जाने के फैसले को बेतुका करार देते हुए जनहित में उसे सेक्टर-12 में आरवीएस कालेज के पास या उकरीद मोड़ के पास ले जाने की मांग की। उन्होंने भाजपा सरकार को बेईमानों की सरकार बताते हुए कहा कि कानून को ताक पर रखकर झाविमो से जीते हुए 6-6 विधायकों को अपने में मिला लेना बेईमानी नहीं तो और क्या है? यह संविधान के अनुच्छेद-10 के तहत गलत है।
'आग तो बस बहाना, असल मकसद कोयला निकालना'
प्रेसवार्ता के क्रम में धनबाद-चंद्रपुरा रेललाइन को बंद किये जाने के संदर्भ में पूछे जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल ने कहा कि आग तो बस एक बहाना है। असल मकसद कोयला निकालना है, जिसके लिये डीसी रेललाइन को एकदम से बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के बंद कर दिया गया। इसके साथ-साथ 137 किलोमीटर रेललाइन को बंद करने की साजिश है। आग पर काबू पाने और पहले रेललाइन को सुरक्षित करने का प्रयास ही नहीं किया। बंद करना तो सबसे अंतिम विकल्प है। उन्होंने वर्ष 1991 में कुवैत की 700 तेल खदानों में लगी भीषण आग को वहां की सरकार के प्रयास से मात्र 10 माह में बुझाकर जनजीवन सामान्य कर लिये जाने का उदाहरण देते हुए कहा, 'आज तो तकनीक पहले से काफी आगे बढ़ चुकी है। एक आग बुझा नहीं सकते और कहते हैं हम ताकतवर हैं। ग्लोबल टेंडर निकालकर आग बुझाने का पहले प्रयास तो किया जाता। वैसे भी सीबी (कोल बियरिंग) एक्ट के तहत कोयला निकालने के बाद जमीन का समतलीकरण कर रैयतों को वापस कर दिया जाना है, लेकिन आज तक एेसा नहीं किया गया।' उन्होंने कहा विरोध कोयला निकालने का नहीं, लोगों को लूटने का है।