बोकारो, (हि.स.)। 'आज की शिक्षा-व्यवस्था में युवा पीढ़ी को केवल किताबी ज्ञान तक ही सीमित रखा जा रहा है जबकि उनमें भारतीय सनातन सभ्यता व संस्कृति के साथ आध्यात्मिक चेतना व ज्ञान का विकास भी जरूरी है। युवाओं में भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा का विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है। तभी उनका सर्वांगीण विकास संभव है।' यह कहना है कि चिन्मय विश्वविद्यापीठ के अध्यक्ष एवं न्यासी स्वामी अदव्यानंदजी का। शनिवार को स्थानीय चिन्मय विद्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने उक्त बातें कही।
उन्होंने कहा कि युवा जब अपने देश की प्राचीन ज्ञान-परम्परा से जुड़ेंगे तभी सही मायने में वे एक सफल नागरिक एवं सफल मानव बन सकते हैं। आत्मिक, मानसिक व बौद्धिक चेतना के विकास के लिये आध्यात्मिक ज्ञान तथा सनातनी ज्ञान आवश्यक है। उन्होंने बताया कि इसी परिप्रेक्ष्य में गत वर्ष स्थापित चिन्मय विश्वविद्यापीठ अपने-आप में एक आधुनिक व आदर्श गुरुकुल साबित हो रहा है। यहां सामान्य व रोजगारपरक शिक्षा-व्यवस्था के साथ-साथ प्राचीन ज्ञान परम्परा की भी विधिवत शिक्षा दी जा रही है और यही इसका अनूठापन है। स्वामीजी ने चिन्मय विश्वविद्यापीठ को अपनी तरह का विश्व में एकमात्र विश्वविद्यालय बताते हुए कहा कि यहां बी. काम, बीबीए, बीए (मानस-शास्त्र), बीए (संस्कृत), एमए (संस्कृत), युवा सशक्तीकरण सिद्धांत संबंधी पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के साथ-साथ हिन्दुस्तानी गायन संगीत, बांसुरी तथा तबलावादन की संगीत-शिक्षा के पाठ्यक्रम की भी व्यवस्था है। इस विश्वविद्यापीठ से छात्र केवल छात्र बनकर नहीं, बल्कि एक शोधकर्ता और आचार्य के रूप में निकलेंगे।
एक सवाल के जवाब में स्वामीजी ने कहा कि आने वाले वर्षों में झारखंड ही नहीं, बल्कि देश के बाहर भी चिन्मय विश्वविद्यापीठ की शाखायें खोलने पर विचार किया जा रहा है। अभी फिलहाल यह अर्नाकुलम तथा पुणे में स्थापित हैं। साथ में मौजूद कैम्पस डायरेक्टर एनएम सुंदर ने बताया कि मौजूदा सत्र में कुल 120 छात्र-छात्रायें नामांकित हैं। सत्र 2018-19 के लिये नामांकन चालू है। इस मौके पर चिन्मय विद्यालय, बोकारो के अध्यक्ष विश्वरूप मुखोपाध्याय, सचिव महेश त्रिपाठी, प्राचार्य डा. अशोक सिंह, उपप्राचार्य अशोक कुमार झा, जनसंपर्क पदाधिकारी संजीव कुमार सिंह आदि मौजूद थे।