वाशिंगटन/नई दिल्ली, (हि.स.)। अमेरिकी भूगर्भ वैज्ञानिकों की एक टीम ने रामसेतु के अस्तित्व पर मुहर लगा दी है। और कहा है कि यह 7 हजार साल पहले अस्तित्व में आया था। इसके बाद भाररतीय राजनीति में भूचाल आ गया है।
अमेरिकी पुरातत्वविदों की टीम ने सेतु स्थल के पत्थरों और बालू के सैटेलाइट से मिले चित्रों का अध्ययन करने के बाद यह रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रामसेतु के अस्तित्व के दावे को सच बताया है।
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) अमेरिकी वैज्ञानिकों, पुरातत्वविदों व डिस्कवरी चैनल के इस दावे का स्वागत किया है। विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त महा सचिव डा. सुरेन्द्र कुमार जैन ने कहा है कि नासा का सैटेलाइट इस तथ्य की ओर पहले ही संकेत कर चुका था। इन वैज्ञानिक खोजों ने यह और स्पष्ट कर दिया है कि केवल रामसेतु ही नहीं, भगवान राम भी भारत के गौरवशाली इतिहास का एक अटूट हिस्सा हैं।
डा जैन ने कहा कि यह रिपोर्ट उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो भगवान राम के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगाते थे और उनको काल्पनिक चरित्र मानते थे। वे राम को नकारने वाले एक षड्यंत्र के अंतर्गत हिंदू आस्थाओं को अपमानित कर रहे थे। अंग्रेजों के द्वारा प्रारंभ किया गया यह षड्यंत्र भारत को अपनी जड़ों से काटने का षड्यंत्र था। उन्हें मालूम था कि भारत की जड़ें राम के साथ जुड़ी हैं। दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद भी जिस तरह कुछ राजनीतिज्ञों और भाड़े के इतिहासकारों ने राम के अस्तित्व को नकारा वह बेहद शर्मनाक है। अब उन सबको व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को राम के अस्तित्व को नकारने वाले शपथ पत्र देने के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।
वैज्ञानिकों ने इसको एक सुपर ह्यूमन एचीवमेंट बताया है। अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो भारत-श्रीलंका के बीच 30 मील के क्षेत्र में बालू की चट्टानें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं, लेकिन उन पर रखे गए पत्थर कहीं और से लाए गए प्रतीत होते हैं। इसकी उम्र करीब सात हजार साल से भी पुरानी बताई जा रही है। वहीं रिपोर्ट में यहां मौजूद पत्थरों को भी करीब चार-पांच हजार साल पुराना बताया गया है।
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अमेरिकी रिसर्च रिपोर्ट का स्वागत करते हुए कहा कि हजारों वर्षों से राम का जीवन इस देश के कण-कण में है। अब विज्ञान ने भी पुष्टि की है. रामसेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाने वाले गलत साबित हुए हैं।