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अन्त्योदय कल्याण से ही देश का सतत विकास सम्भव: अरुण जेटली
By Deshwani | Publish Date: 24/9/2017 3:56:58 PM
अन्त्योदय कल्याण से ही देश का सतत विकास सम्भव: अरुण जेटली

 नई दिल्ली, (हि.स.)। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रविवार को कहा कि देश का विकास तब तक सम्भव नहीं है जब तक देश के आखिरी व्यक्ति (अन्त्योदय) को उसका लाभ न मिले। जेटली ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय ने हमेशा से ही आखिरी व्यक्ति के कल्याण की बात कही और सरकार उस पर आगे बढ़ रही है। अरुण जेटली ने यह बाते रविवार को विज्ञान भवन में संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित दीनदयाल जन्म शताब्दी के कार्यक्रम पर बतौर मुख्य अतिथि कही। जेटली ने कहा, दीनदयाल जी ने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी।'

जेटली ने कहा, 'पंडित दीनदयाल जी आजतक कहा थे लेफ्ट थे राइट थे या सेंटर में थे। दो दिनों तक विचारकों ने विश्लेषण किया लेकिन मैं इसको राजनीतिक रूप से बताता हूं। हम इन विचारधारा की लड़ाई में स्वयं को कहा पाते हैं।' उन्होंने कहा, 'हर समाज और विश्व एक विचारधारा से गुजरता है। देश मे केवल एक विचारधारा चलती थी। 50 के दशक में वामपंथी हमेशा कुछ क्षेत्र तक सीमित थे। वहीं राष्ट्रवादी लोग टुकड़ों में विभाजित थे। समाजवादी आंदोलनों से पैदा हुए लोग लोहिया के नेतृत्व में थे।' 
जेटली ने एक लेख का जिक्र किया कि एक समय था कि देश में विपक्ष नहीं था लोग अपनी जगह बनाने में लगे थे। वामपंथी विचारधारा भी क्षेत्रीय थी दो से तीन राज्यों तक अब वो बिल्कुल सिमटती जा रही है। अब उनका स्थान तेजी से हम लेते जा रहे है चाहे बंगाल हो या केरल हो।'
जेटली ने कहा कि जबसे विश्व में सोवियत संघ का विघटन हुआ तब से एक विचारधारा की मौजूदगी मात्र समाज में तीन क्षेत्रों में बची है। एनजीओ, एजुकेशन, विचारकों में। अब यह अल्ट्रा लेफ्ट बन गए हैं। दूसरी विचारधारा इस्लामिक इसका प्रभाव भारत में भी दिखता है जम्मू कश्मीर के आन्दोलन में नजर आता है। कश्मीर में पहले राजनीतिक आंदोलन अब इस्लामिक आंदोलन में परिवर्तित हो गया है। यह सौभाग्य है कि आईएसआईएस के प्रभाव देश में ज्यादा नहीं पड़ा लेकिन यह विचारधारा अवश्य देश में कई हिस्सों में नुकसान पहुंचा रही है। 
जेटली ने कहा कि इन्हीं दोनों विचारधारा का संयुक्तिकर्ण दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में देखने को मिला था। आजकल हर विश्वविद्यालय में यही देखने को मिल रहा है। पिछले 10 वर्षों से कांग्रेस सिकुड़ती जा रही है। जेएनयू की घटना इंदिरा-राजीव के शासन में होती तो कोई कोंग्रेसी वहां नही जाता बल्कि वो भी विरोध करते। देश के टुकड़े करने वाले के साथ खड़ा होना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस देश को एक कमजोर बेबस देश बनाया जाए यह उनकी विचारधारा है।
 
 
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