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हिन्दुस्तान केबल्स बन्द होने के कारण मण्डप उदास
By Deshwani | Publish Date: 24/9/2017 10:49:12 AM
हिन्दुस्तान केबल्स बन्द होने के कारण मण्डप उदास

आसनसोल, (हि.स.)। राज्य के रूपनारायणपुर स्थित हिन्दुस्तान केबल्स कारखाना बंद हो चुका है। इसलिए केबल्स कॉलोनी के पांच स्थानों पर होने वाली पूजा में इस वर्ष तीन स्थानों पर पूजा नहीं हो रही है।

हिन्दुस्तान केबल्स कम्पनी ने कारखाना बन्द करने के साथ-साथ बकाया रुपये भी चुकता होने के बाद कर्मचारियों को कमरे खाली करने के निर्देश दिये हैं। जिससे अधिकांश क्वार्टर खाली हो चुके हैं। जिन्हें बकाया राशि नहीं मिली है, सिर्फ वे ही कम्पनी के क्वार्टर में रह रहे हैं। लेकिन उन्हें कम्पनी की ओर से बिजली एवं पानी नहीं मिल रही है। इसके बावजूद स्थानीय लोगों ने परम्परा निभाने के लिए किसी तरह दुर्गा पूजा करने का निर्णय लिया है।
 
लेयर केशियर में 50 साल के दौरान इस वर्ष दुर्गा पूजा नहीं हो रही है। क्वार्टर के निवासी गौतम राय ने बताया कि यहां के 850 क्वार्टर लोग खाली कर चुके हैं। सिर्फ पांच-छह कमरे में लोग बचे हैं। इनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि दुर्गा पूजा कर सकें। दुर्गा पूजा के पहले ही यह इलाका श्मशान में तब्दील हो चुका है। इधर बी-थ्री कॉलोनी के 216 परिवारों में से सिर्फ 10 से 12 परिवार बचे हैं। निवासी स्वरूप विश्वास के अनुसार, यहां पानी-बिजली नहीं है। लोगों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में सवाल है कि पूजा कौन करेगा? बी-टू सेक्टर के एक या दो नम्बर कॉलोनी में पिछले 30 वर्षों से धूमधाम से दुर्गा पूजा मनाई जाती है। कभी 150 परिवार यहां रहते थे। अब महज 40 लोग बचे हैं। वहीं एक अन्य निवासी शुभ्रा मजुमदार का कहना है कि दुर्गा पूजा की इच्छा तो है पर क्षमता नहीं है। बकाया रुपया कितना मिलेगा, यह भी तय नहीं है। जगह छोड़कर जाना पड़ेगा। सिर्फ यही अफसोस रहेगा कि दुर्गा पूजा नहीं देख सकी।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1986 से लगातार यहां दुर्गा पूजा होती आ रही थी, लेकिन कम्पनी बन्द होने के साथ लोगों को यह सन्देह भी हो चुका था कि इस साल यहां दुर्गा पूजा नहीं होगी। वर्तमान समय में 210 क्वार्टर में से 30 क्वार्टर में ही लोग रह रहे हैं। जिनके पास दुर्गा पूजा करने की क्षमता नहीं है। यहां की पूजा कमेटी के अध्यक्ष गौतम माजी ने कहा कि पहले दो से ढाई लाख रुपये की लागत से यहां दुर्गा पूजा होती थी, लेकिन वर्ष 2017 में 70 हजार रुपये भी जुटाने भी मुश्किल हो चुका है।
 
 
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