मुंबई, (हिस)। वैसे तो अतीत में लगभग हर चेयरमैन को लेकर कुछ न कुछ विवाद रहे हैं, लेकिन बिना संकोच कहा जा सकता है कि पहलाज निहलानी अब तक के सबसे ज्यादा विवादित चेयरमैन साबित हुए। साल 2015 में जनवरी में केंद्र सरकार द्वारा अचानक इस पद पर पहलाज निहलानी की नियुक्ति से हर कोई चौंक उठा था। पहलाज निहलानी ने भी इस फैसले को खुद के लिए चौंकाने वाला बताया था।
पहलाज की नियुक्ति को लेकर कहा जाता था कि शत्रुघ्न सिन्हा के कहने पर उनको इस पद पर नियुक्त किया गया, जो उस वक्त भाजपा के कद्दावर नेता माने जाते थे। तीन साल के लिए पहलाज निहलानी को नियुक्त करने का सरकारी फैसला जितना चौंकाने वाला था, उससे ज्यादा बडा फैसला ये रहा कि उनका कार्यकाल खत्म होने से 5 महीनें पहले ही उनको हटाने के फैसले की भी किसी को भनक नहीं लगने दी गई। यहां तक कि पहलाज निहलानी को भी भनक नहीं लगी, जैसा कि उनके दोस्त मान रहे हैं।
पहलाज निहलानी का ढाई साल का कार्यकाल विवादों से भरा रहा। इस दौरान अपनी कार्यशैली से पहलाज निहलानी ने लगभग पूरी फिल्म इंडस्ट्री को अपना दुश्मन बना लिया। इस दौरान पहलाज निहलानी के सेंसर बोर्ड ने जहां अंग्रेजी फिल्मों में किस सीनों को भी हिंदुस्तानी कलचर के खिलाफ माना और इसे हटाने का फैसला किया, तो दूसरी ओर, यशराज में बनी आदित्य चोपड़ा की फिल्म बेफिक्रे को बिना किसी कट के पास कर दिया।
खास तौर पर ये साल तो पहलाज निहलानी के साथ विवादों का पिटारा लेकर आया। प्रकाश झा की फिल्म लिपिस्टिक अंडर माई बुर्का से लेकर राम गोपाल वर्मा की सरकार 3 और मधुर भंडारकर की इंदु सरकार के अलावा अक्षय कुमार की फिल्म टायलेट एक प्रेमकथा को लेकर भी सेंसर की कैंची चली। इन सारी फिल्मों से ज्यादा विवाद कुशान नंदी की फिल्म बाबूमोशाय बंदूकाबाज को लेकर हुआ, जिसके लिए सेंसर बोर्ड ने 48 कटस दिए।
साथ ही फिल्म की महिला निर्माता किरण श्राफ के साथ कथित तौर पर बोर्ड के सदस्यों द्वारा बदसलूकी का मामला भी गूंजा। निर्देशकों की संस्था कुशान नंदी के साथ खड़ी हुई, तो पहलाज ने इसे भी अनदेखा किया, जबकि वे ये मान रहे थे कि कुशान नंदी उनके सामने अपने राजनीतिक कनेक्शंस की बात कर रहे थे। कौन जाने, पहलाज की विदाई का एक कारण ये भी हो।