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संपादकीय
(हज सब्सिडी पर प्रहार यानी मुस्लिम महिलाओं के विकास का करारः सियाराम पांडेय ‘शांत’
By Deshwani | Publish Date: 17/1/2018 4:06:14 PM
(हज सब्सिडी पर प्रहार यानी मुस्लिम महिलाओं के विकास का करारः सियाराम पांडेय ‘शांत’

सरकारी धन का सदुपयोग हो, इसके लिए केंद्र सरकार सतत सचेष्ट हैै। इस मामले में वह हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। हज पर सब्सिडी खत्म करने को इसी आलोक में देखा जा सकता है। आजादी के बाद से आज तक हज यात्रा पर सरकार हर साल 700 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती रही है। इतनी बड़ी राशि को बचाकर केंद्र सरकार मुस्लिम बालिकाओं और महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाना चाहती है। मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के निमित्त मोदी सरकार को एक नए आर्थिक मोर्चे पर जूझना पड़ता है। हज सब्सिडी खत्म कर उसने अपनी यह चिंता तो दूर की ही है, एक तीर से कई निशाने भी लगा दिए हैं।
सब्सिडी खत्म करने से मुसलमानों की सरकार के प्रति नाराजगी स्वाभाविक है। विपक्षी दल भी इस मामले को राजनीतिक रूप देंगे। सरकार की नीति और नीयत पर सवाल भी उठेंगे। इसे मुस्लिम विरोधी कदम भी करार दिया जाएगा लेकिन मोदी सरकार ने इस विरोध की काट तलाश ली है। 700 करोड़ रुपये मुस्लिम आबादी पर ही खर्च हो रहे हैं। मुस्लिम लड़कियां पढ़ती हैं, महिलाएं पढ़ती हैं, उनका कौशल विकास होता है तो इससे मुसलमानों को ही फायदा होगा। नाक हाथ से सीधे पकड़ी जाए या हाथ घुमाकर पकड़ी जाए, इससे क्या फर्क पड़ता है। पकड़ी तो नाक ही जाएगी। मोदी सरकार को पता है कि उसका मतदाता कौन है, कौन नहीं। जो नहीं है, उसे वह अपना मतदाता बनाना भी नहीं चाहती। बनाना चाहे भी तो बना नहीं सकती। एक बड़ी ग्रंथि है जो टूटने से रही। इसलिए जो मोदी के लिए मतदान करते हैं, उन्हें एकजुट बनाए रखना मोदी और उनकी पार्टी की रणनीति का अहम हिस्सा है। इसे इसी रूप में देखना ज्यादा मुनासिब होगा।
तीन तलाक का विरोध कर, लोकसभा में विधेयक पास कराकर मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति तो हासिल की ही है। कुछ राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में भी मुस्लिम महिला मतदाताओं का रुझान भाजपा की ओर देखने को मिला है। यही वजह है कि विपक्ष के आरोपों के तल्ख प्रहार झेलते हुए भी उसने तीन तलाक विरोधी कानून को अमली जामा पहनाने की कोशिश की और अब जब उसने हज यात्रा पर सब्सिडी खत्म की है और सब्सिडी की राशि मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी पर खर्च करने की बात की है तो इसका संदेश साफ है। हज यात्रा पर सब्सिडी खत्म करने से हिंदुओं को भी लगेगा कि चलो एक तो सरकार आई जो तुष्टिकरण की राजनीति में नहीं, देश के विकास में, लोगों के उत्थान में विश्वास रखती है। हिंदुओं को लगता था कि तीर्थयात्रा तो वे भी करते हैं। उन्हें तो कोई सरकारी मदद नहीं मिलती। इस निर्णय से उन्हें बराबरी का अहसास होगा।
यह अलग बात है कि हाल के कुछ महीनों में सरकार ने हज हाउस की तर्ज पर मानसरोवर हाउस बनाने और मानसरोवर यात्रा पर जाने वालों और ननकाना साहब की यात्रा करने वाले सिखों के लिए सरकारी अनुदान देने की घोषणा की थी। मुस्लिम नेताओं की ओर से यह मांग की जा सकती है कि हिंदू तीर्थयात्रियों को कैलाश मानसरोवर जाने के लिए दिए जाने वाले अनुदान की व्यवस्था पर भी रोक लगे। आजम खान ने सभी धर्मों के लोगों को दी जाने वाली तीर्थयात्रा सब्सिडी खत्म करने की मांग कर विरोध की त्वरा तेज कर दी है। सरकार का इस पर क्या रुख होगा, यह देखने वाली बात होगी लेकिन आजादी से आज तक हज यात्रा की सब्सिडी के नाम पर यह देश कितना खर्च कर चुका है, यह भी किसी से छिपा नहीं है।
हज के लिए सऊदी अरब जाने वाले भारतीय हाजियों की यात्रा के खर्च का कुछ हिस्सा सरकार सब्सिडी के रूप में खुद वहन करती है। यह सब्सिडी उन्हीं हज यात्रियों को मिलती है, जो हज कमेटी के जरिए जाते हैं। बाकी जो प्राइवेट टूर सर्विस के जरिए जाते हैं, उन्हें किसी तरह की सब्सिडी नहीं मिलती। हज यात्रियों को मिलने वाली सब्सिडी का सबसे बड़ा हिस्सा हवाई यात्रा पर खर्च किया जाता है। भारत सरकार का नागरिक उड्डयन मंत्रालय हज कमेटी ऑफ इंडिया के जरिए यह सब्सिडी मुहैया कराता है। यह पैसा एयर इंडिया को सीधे दिया जाता है। मुसलमानों का यही मानना है कि सब्सिडी एयरलाइन्स को दी जा रही है न कि उनको। मतलब सरकार मदद भी कर रही है और मदद का श्रेय भी उसे नहीं मिल रहा, जिनको मदद मिल रही है। वे इसे सरकार द्वारा घाटे में चल रही एयर इंडिया को उबारने का प्रयास मानते रहे हैं, एक छल मानते रहे हैं।
हज करना हर मुसलमान का सपना होता है। अपने जीवन में एक बार वे मक्का-मदीना जरूर जाना चाहते हैं। गरीब मुसलमानों को हज पर जाने में अभी तक सरकारी मदद मिल जाया करती थी लेकिन अब क्या अमीर, क्या गरीब सभी मुसलमानों को अपने खर्च पर हज यात्रा करनी होगी। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने स्पष्ट कर दिया है कि केंद्र सरकार अब हज यात्रियों को कोई सब्सिडी नहीं देने जा रही। देश के पौने दो लाख मुसलमान अब अपने खर्च पर मक्का-मदीना की यात्रा करें। आजादी के बाद यह पहला मौका है जब हज यात्रियों की सब्सिडी हटाई गई है। सरकार का तर्क यह है कि हज सब्सिडी का लाभ गरीब मुसलमानों को नहीं मिल पा रहा था। सरकार अब गरीब मुस्लिमों के लिए अलग से व्यवस्था करेगी। यह व्यवस्था क्या होगी, इसका खुलासा अभी नहीं हुआ है लेकिन इस गुंजाइश के दरवाजे खोलकर वह विपक्ष के विरोध की धार को कुंद जरूर करना चाहती है।
सरकार का तर्क है कि हज यात्रा पर मिलने वाली सब्सिडी का फायदा अभी तक सिर्फ एजेंट्स उठा रहे थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। भारत के हज यात्रियों को समुद्री मार्ग से भेजने की योजना को सऊदी अरब ने मंजूरी दे दी है। मुख्तार अब्बास नकवी ने सऊदी अरब के हज व उमराह मंत्री मोहम्मद सालेह बिन ताहेर बेंटेन के साथ करार किया है। 23 साल बाद फिर से समुद्री मार्ग खुलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। 1995 में इसे बंद किया गया था, उसके बाद से हवाई मार्ग से लोग हज यात्रा पर जा रहे हैं। पहले समुद्र के रास्ते हज यात्रा में 12 से 15 दिन का समय लगता था, लेकिन अब तीन से चार दिन में जहाज से यात्रा पूरी हो जाती है। एक तरफ का रास्ता 23 सौ नाटिकल मील का है। 1995 में मुंबई के यलो गेट से सऊदी अरब के जेद्दाह तक जल मार्ग पर यात्रा होती थी। सरकार ने कहा है कि हज यात्रा का खर्च बढ़ने की संभावना के मद्देनजर मुसलमानों को पानी के जहाज से मक्का जाने का विकल्प दिया जाएगा। इससे सरकार का जल परिवहन का सपना भी पूरा होगा।
लंबे अर्से से मुसलमानों का एक बड़ा तबका, धार्मिक संस्थाएं और असदुद्दीन ओवैसी जैसे सांसद भी इसे खत्म करने की मांग करते रहे हैं। उनकी मांग थी कि हज के लिए यात्रियों को अपनी सुविधा के अनुसार जाने की इजाजत होनी चाहिए। हज सब्सिडी खत्म करने के फैसले के कुछ दिन पहले ही सरकार ने 45 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को बिना पुरुष अभिभावक के कम से कम चार लोगों के समूह में हज यात्रा करने की इजाजत दी थी। मौलानाओं ने केंद्र सरकार के इस निर्णय की जमकर आलोचना की थी। सांसद असदुद्दीन ओवैसी शायद इस मामले में कुछ न कह पाएं, क्योंकि उन्होंने पहले ही हज सब्सिडी हटाने और उसे मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई पर खर्च करने की मांग की थी। हाल में देश में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसे राजनीतिक दल मुस्लिमों को चिढ़ाने वाली कार्रवाई के रूप में देख सकते हैं। उत्तर प्रदेश में हज हाउस की दीवार को भगवा रंग में रंगे जाने का विरोध योगी सरकार पहले ही झेल चुकी है। उसे दीवार का रंग दूसरे ही दिन बदलना पड़ा। हज हाउस के सचिव विभागीय सहमति के बिना हज हाउस की रंगाई के मामले में निलंबित भी किए जा चुके हैं।
मदरसों में आधुनिक शिक्षा का भी मौलवी विरोध करते रहे हैं। बूचड़खानों पर पाबंदी भी इस तबके की नाराजगी का आज तक सबब बनी हुई है। सरकार तर्क दे सकती है कि उसने हज पर सब्सिडी खत्म करने का निर्णय तो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ही किया है। कोर्ट ने इसे 10 साल की समय सीमा में धीरे-धीरे खत्म करने का आदेश दिया था। साल 2006 में ही विदेश मंत्रालय और परिवहन और पर्यटन पर बनी एक संसदीय समिति ने हज सब्सिडी को एक समय सीमा के भीतर खत्म करने के सुझाव दिए थे। मोदी सरकार ने इसे एक झटके में खत्म कर दिया है। इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी लेकिन ऐसा करने पर उसे विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोप भले ही झेलने हों, लेकिन मुसलमानों की आधी आबादी के दिल में मोदी सरकार के लिए संभवतः जगह पक्की जरूर हो गई है। विपक्ष की भी यही चिंता है और मुसलमान भी इस बात को लेकर चिंतित हैं। मुसलमानों की एकजुटता में खलल पड़ गई है। समुद्री यात्रा का विकल्प खुला रखने से निश्चित रूप से उन्हें आर्थिक तौर पर राहत मिलेगी लेकिन समुद्री यात्रा के खतरे भी तो हैं। उनसे निपटना भी सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)\
 

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