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संपादकीय
सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन मोदी का नया मंत्र : सियाराम पांडेय ‘शांत’
By Deshwani | Publish Date: 1/1/2018 12:02:08 PM
सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन मोदी का नया मंत्र : सियाराम पांडेय ‘शांत’

पूरा देश आंग्ल नववर्ष मना रहा है। देश के नेताओं ने भी नए साल के लिए अपने कार्यक्रम तय कर रखे हैं। देशवासियों को नए साल की बधाई देने का भी सिलसिला तेज हो गया है। विपक्ष ने जहां देशवासियों को नए साल की बधाई दी है, वहीं भाजपा पर वार करने से भी वह नहीं चूका है। किसी ने उसे रोजगार पर फोकस करने की सलाह दी है तो किसी ने उस पर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की साजिश करने का आरोप लगाया है। कोई सरकार की विदेश नीति को विफल बता रहा हैं मतलब जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं लेकिन इन सबसे इतर प्रधानमंत्री ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर अपने ‘मन की बात’ कही है। मन की बात तो वे वर्ष भर करते रहे लेकिन साल के आखिर दिन आकाशवाणी पर की गई उनकी ‘मन की बात’ बेहद अहम है। इसमें नए साल में विकास को लेकर सरकार की सोच मुखरित हुई है। नए साल के सूत्र और एजेंडे तय हुए हैं। विकास को लेकर सरकार क्या सोचती है, इसका दर्शन मिला है? 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा ही कुछ नया और सकारात्मक सोचते हैं। वे देश को कुछ नया करने की प्रेरणा देते हैं। साल के अंतिम दिन भी तो कुछ प्रेरक करना ही था। सो उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे देश को जाति, सम्प्रदाय, आतंकवाद और भ्रष्टाचार के कहर से मुक्त कराएं। ‘नये भारत’ का निर्माण करें। प्रधानमंत्री को लगता है कि देश की युवा शक्ति ही इस देश को आगे ले जा सकती है। देश का विकास, देश की सुरक्षा का दायित्व युवाओं के कंधे पर है। इसलिए अपने मन की बात में वे सबसे पहले युवाओं की ओर ही मुखातिब हुए हैं। उन्होंने विकास के मार्ग का स्वरूप निर्धारण भी कर दिया है। 

 

 

गांधी जी ने शांति और अहिंसा के हथियार से देश की आजादी की जंग जीती थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शांति और सद्भावना की प्रेरक शक्ति की बदौलत देश के विकास की जंग जीतना चाहते हैं और इसके लिए वे देशवासियों को निरंतर प्रेरित करते रहे हैं। साल के अंतिम दिन आकाशवाणी पर प्रसारित उनकी वार्ता को कमोवेश इसी संदर्भ में देखना मुनासिब होगा। 21वीं सदी के भारत में शांति और एकता को प्रेरक शक्ति बनाने की बात कहकर उन्होंने एक बार पुनश्च देश का दिल जीत लिया है। नए भारत का आह्वान तो सभी कर सकते हैं लेकिन नए भारत का विजन तो मोदी के पास ही है। उन्होंने गंदगी और गरीबी से मुक्त भारत की कल्पना की है। गरीबी और बेरोजगारी भी गंदगी ही है। गंदगी और गरीबी प्रकारांतर से समानार्थी ही हैं। इनके मिटने में ही इस देश की भलाई है। मोदी ने एक ऐसे भारत के निर्माण का स्वप्न देखा है जिसमें सबके लिए समान अवसर हों और सभी की आशाएं एवं आकांक्षाएं पूर्ण हों। वोट की शक्ति को लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत मानने वालों की वैसे भी देश में कोई कमी नहीं है। हर नेता वोट की ताकत की बात करता है लेकिन वोट की ताकत का लाभ कौन लेता है। वोट की ताकत जिसके पास है, वह तो गरीब का गरीब ही रह जाता है। वंचित-शोषित ही रह जाता है। वह हर चुनाव में राजनीतिक छलना का शिकार होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की बात करते हैं और उसके लिए वोट को सबसे प्रभावी साधन मानते हैं। यह सच भी है। वोट लेकर मतदाताओं को अपने हाल पर छोड़ देने वाले नेताओं के लिए विदा होता साल और आगत वर्ष सोचने-समझने के अवसर तो देता ही है। 

 

 

इक्कीसवी सदी भारत की है, इस बात को अब तक दुनिया के सभी बड़े नेता स्वीकार कर चुके हैं लेकिन भारत को इसके लिए क्या करना होगा, इस पर भी विशेष आत्ममंथन की जरूरत है। क्या इस देश के राजनीतिक दल एक दूसरे को कोसकर ही इक्कीसवीं सदी में अपनी पहचान बनाएंगे या भारत को अभिनव पहचान दिलाने की दिशा में भी अपना कुछ खास योगदान देंगे। नरेंद्र मोदी इस चिंता से बखूबी वाकिफ हैं, उनके लिए अपने पार्टी के हित तो अहम हैं ही, लेकिन देश का हित सर्वोपरि है। यह बात इस देश को समझ भी आ रही है और विपक्ष की चिंता भी यही है कि अगर देश में मोदी के विचारों का सिक्का जमता गया तो उनका राजनीतिक भविष्य क्या होगा? उन्हें सोचना होगा कि युवाओं को साथ लिए बगैर, उन्हें उचित दिशा निर्देशन किए बगैर कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता। 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ में बेहद पते की बात कही है कि युवा भारत की 21वीं सदी के निर्माता बन सकते हैं और इसकी शुरुआत एक जनवरी से हो रही है। मतलब टालमटोल और हीलाहवाली का समय बिल्कुल नहीं है। हर क्षण कीमती है। उसका समुचित इस्तेमाल का परोक्ष संकेत है-इसकी शुरुआत 1 जनवरी से हो रही है। ‘अब न चूक चौहान’ का यह भाव ही देश को आगे ले जा सकता है। प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त के आस-पास दिल्ली में ‘मॉक पार्लियामेंट‘ आयोजित करने का भी सुझाव दिया है। इसमें हर जिले से एक युवा चुना जाएगा जो इस विषय पर चर्चा करेगा कि कैसे अगले पांच साल में एक नए भारत का निर्माण संभव है। संकल्प हो तो सिद्धि कैसे मिल सकती है? उन्होंने यह भी कहा है कि युवाओं का वोट नए भारत के निर्माण का आधार बनेगा। इस माह मनाए जाने वाला गणतंत्र दिवस समारोह यादगार होगा क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार इस अवसर पर सभी दस आसियान देशों के नेता मुख्य अतिथि होंगे। उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के हितों की भी बात की। हज को लेकर 70 साल तक देश में ‘मेहरम’ की पाबंदी चली आ रही थी। यह व्यवस्था मुस्लिम महिलाओं के साथ ‘भेदभाव’और ‘अन्याय’ जैसी थी। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने इस पाबन्दी को हटा दिया है। अब वे बिना किसी रिश्तेदार के, अकेले भी हज यात्रा पर जा सकती हैं। मेहरम के बिना हज पर जाने का आवेदन करने वाली सभी महिलाओं को लॉटरी सिस्टम से अलग रखकर विशेष श्रेणी में हज पर जाने का अवसर प्रदान करने का भी उन्होंने अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को सुझाव दिया है। बिना महरम के हज पर जाने वाली मुस्लिम महिलाओं को हज पर जाने की सुविधा देकर प्रधानमंत्री ने उन्हें नए साल का उपहार दिया है। 

 

 

तीन तलाक के खिलाफ विधेयक तो लोकसभा में पारित हो ही चुका है। सरकार की कोशिश इसे कानूनी जामा पहनाने की है। प्रधानमंत्री की इस सोच में दम है कि जब कई इस्लामिक देशों में भी महरम का नियम नहीं है तो भारत में मुस्लिम महिलाओं को यह अधिकार प्राप्त क्यों न हो? मुस्लिम धर्मगुरुओं की इस पर आपत्ति आनी शेष है। आएगी भी लेकिन यह तो सोचा ही जाना चाहिए कि परंपरा के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के साथ दशकों तक अन्याय होता रहा और किसी ने इस पर सोचा तक नहीं। मुस्लिम धर्मगुरु सुरक्षा के लिहाज से इसे उचित ठहरा सकते है। जिस समय महरम का नियम बना था, उस समय हजयात्रियों के साथ लूट-चोरी आम बात थी लेकिन अब उस तरह के हालात नहीं हैं। बदले हालत में नियमों को यथावत बनाए रखना आखिरकार कितना उचित है? प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया है कि वर्ष 2018 में देशवासी भारत के समग्र विकास की दिशा में काम करें। उन्होंने इस बात के भी संकेत दिए कि अब उनकी सरकार काला धन, भ्रष्टाचार, बेनामी संपत्ति एवं आतंकवाद से निपटने के लिए सुधार उपायों को तेज करने वाली है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ ही इस देश का मूल मंत्र है लेकिन नए साल का मंत्र तो ‘सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन’ ही होना चाहिए। राजनीतिक दलों को विरोध करना चाहिए लेकिन उस विरोध में सकारात्मकता भी दिखनी चाहिए। देश के भले के लिए की गई आलोचना सुख देती है और विरोध के लिए किया गया विरोध बाल में खाल निकालने का बेजां प्रयास साबित होता है। इस सत्य को जब तक ठीक से नहीं समझा जाएगा तब तक विरोध की बांसुरी से बिना मतलब के बेसुरे बोल ही निकलेंगे।

 

प्रधानमंत्री की इस बात में दम है कि छोटी-छोटी बातों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। छोटी फुंसी ही नासूर बनती है। छोटी-छोटी समस्याएं हल न की जाएं तो वे विस्फोटक स्वरूप में हमारे सामने आती हैं। वहीं छोटी-छोटी बातें हमें तरक्की के आसमान में बहुत दूर तक ले जाती हैं। उन्होंने पूरे विश्वास और दृढ़ता के साथ ‘मन की बात’ में यह स्थापना की है कि भारत की विकास यात्रा, हमारी नारी-शक्ति के बल पर, उनकी प्रतिभा के भरोसे आगे बढ़ी है और आगे बढ़ती रहेगी। हमारा निरंतर प्रयास होना चाहिए कि हमारी महिलाओं को भी पुरुषों की तरह बराबरी का हक मिले। समान अवसर मिले ताकि वे भी प्रगति के मार्ग पर एक-साथ आगे बढ़ सकें। प्रधानमंत्री ने साल के अंतिम दिन भी देश के साथ अपने विचार साझा किए हैं। यह देश हम सबका है। अब हमें तय करना है कि इस साल हम क्या नया और क्या खास कर भारत का नाम पूरी दुनिया में रौशन करेंगे? 

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं)

 

 

 

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