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संपादकीय
पद्मावती को छोड़ बच्चों की चिंता करें राजनेता : पंकज शुक्ला
By Deshwani | Publish Date: 20/11/2017 11:12:01 AM
पद्मावती को छोड़ बच्चों की चिंता करें राजनेता : पंकज शुक्ला

पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में मुख्यमंत्री निवास पर भाजपा विधायक दल की बैठक हुई। बैठक में विधायकों को बताया गया कि सरकार ने भावांतर भुगतान योजना किसानों के हित में आरंभ की है लेकिन किसानों तक ही इसका संदेश सही नहीं जा रहा। विधायकों को योजना के लाभ बताते हुए कहा गया कि वे मैदानी स्तर की नाराजगी दूर करें। इस बैठक में हुई तमाम चर्चाओं में फिल्म पद्मावती की फिक्र सब पर भारी थी। विधायकों ने फिल्म पर बैन की मांग तक रखी। फिल्म पर हुए विवाद पर माननीयों की रूचि ‘राजनीतिक’ महत्व की है मगर अफसोस है कि ऐसी चिंता प्रदेश में बच्चों के स्वास्थ्य,शिक्षा और पोषण से जुड़े मुद्दों पर दिखाई नहीं देती।

पद्मावती पर फिल्म के कारण विवाद की खबर हर किसी को है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि हम नवंबर माह में पांच दिन के अंतराल में दो बार बाल दिवस मनाते हैं। एक तो 14 नवंबर को पंडित नेहरू की जयंती पर और दूसरा 20 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व बाल दिवस। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 20 नवंबर को विश्व भर के बच्चों के बीच एकता और सजगता को प्रोत्साहित करने के लिए विश्व बाल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। उद्देश्य यही कि हम बच्चों को प्रभावित करने वाले कारकों पर पर्याप्त ध्यान दें। मगर ऐसा कम ही होता है कि औपचारिक आयोजना के अलावा बहुत गंभीरता से बच्चों के बारे में सोचा जाए।

आंकड़ों पर गौर कर लीजिए, 2016 में संसद में एक रिपोर्ट सौंपी गई थी जिसमें बताया गया था कि देश में 1,05,630 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं। मप्र में ऐसे स्कूलों की संख्या सर्वाधिक है। यहां 17,874 स्कूलों में केवल एक शिक्षक है। 50 हजार से अधिक शिक्षकों के पद खाली हैं। इन कमियों के असर को एक दूसरी रिपोर्ट सिद्ध करती है। नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की वर्ष 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक मप्र के बच्चे पढ़ाई में देश में सबसे कमजोर हैं।

मप्र बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराध के मामले में देश में दूसरे नंबर पर पहुंच गया है। चाइल्ड राइट्स ऑब्जर्वेटरी मप्र की 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामले में मप्र का देश में दूसरा स्थान है। वर्ष-2015 के दौरान अपहरण के 5,306, ज्यादती के 1,568 और हत्या के 124 मामले दर्ज किए गए। वर्ष-2015 में दुष्कृत्य की 391 घटनाएं हुईं। इनमें 35.7 प्रतिशत दुष्कृत्य की घटनाएं बच्चों के साथ हुईं। सर्वेक्षण के अनुसार जिन जिलों में शहरी आबादी का प्रतिशत ज्यादा है अथवा जिन जिलों की सीमाएं बड़े शहरों से लगी हुई हैं, वहां बच्चों के साथ अपराध के मामले ज्यादा घटित हुए हैं।

मप्र में हर साल 18 लाख 40 हजार बच्चे जन्म लेते हैं, मगर इनमें से एक लाख बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते। निमोनिया, डायरिया जैसी इलाज में आसान बीमारी से करीब 18 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है। राजधानी भोपाल में एक माह के अंदर तीन बच्चियों से गैंगरेप के मामले सामने आ चुके हैं। महिला सुरक्षा के लिए स्थापित गौरवी वन स्टॉप क्राइसिस रेसेल्युशन सेंटर ने बीते कुछ सालों में 29 नाबालिग किशोरियों का प्रसव करवाया है। बाल विवाह के मामले में मप्र देश के पहले 8 राज्यों में पहुंच गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट 2015-16 के अनुसार देश में 20 से 24 साल की 26.8 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हुआ है। देश में बाल विवाह की दर 26.8 प्रतिशत है, पर मप्र के ग्रामीण क्षेत्रों में यह 31.5 फीसदी है।

अवांछित बेटियों को कोख में ही नहीं मारा जा रहा बल्कि झाडिय़ों, कचरे के ढ़ेर में फेंक कर लावारिस छोड़ा जा रहा है। जन्म के पहले से आरंभ हुआ यह संकट जिंदगी के लिए सबसे महत्वपूर्ण जन्म के बाद के 1000 घंटों तक चुनौती बना रहता है। यही कारण है कि यूनिसेफ ने शीघ्र तथा पूर्ण स्तनपान, पूर्ण टीकाकरण, कुपोषण पर पोषण पुनर्वास केन्द्र की सहायता लेने जैसे अभियान चलाए रखे हैं मगर माननीयों की रूचि इन कार्यों में कम ही है। हमारी राजनीतिक और सामाजिक चेतना फिल्म के ग्लेमर से आगे निकल पर शहर-गांव तक फैली इस हकीकत से दो-चार होना नहीं चाहती। बच्चों के मामलों ‘बच्चों सी’ बातें करने वाले समाज के सामने यही चुनौती है कि अधिक एकीकृत प्रयास कर वह कब ‘बड़ों’ सा बर्ताव करेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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