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संपादकीय
एक संस्मरण पुनः स्मरण : राजनाथ सिंह ‘सूर्य’
By Deshwani | Publish Date: 10/10/2017 12:54:07 PM
एक संस्मरण पुनः स्मरण : राजनाथ सिंह ‘सूर्य’

अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री बनाए गए थे। वाजपेयी जी जसवंत सिंह को यह दायित्व सौंपना चाहते थे, लेकिन कतिपय कारणों से उन्हें अनुभवी सिन्हा को यह दायित्व सौंपना पड़ा। यशवंत सिंह अल्पकालीन उस चन्द्रशेखर मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रह चुके थे, जब इस देश का सरसठ टन सोना इंगलैंड और स्वीटजरलैंड में गिरवी रखना पड़ा था। वाजपेयी सरकार को उनके अनुभव से लाभ मिलने की उम्मीद रही होगी। सांसद होने के बावजूद मेरी ऐसी पहुंच और ज्ञान नहीं था-आज भी नहीं है- कि मैं किसी प्रधानमंत्री द्वारा किसी को किसी विभाग का दायित्व सौंपने के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह लगा सकूं। चन्द्रशेखर जी के परिवार से निकट सम्बन्ध होने के बावजूद मैं उनके निकटवर्तियों से अनभिज्ञ रहा हूं। इन दिनों जब श्री सिन्हा आधुनिक भीष्म पितामह के रूप में अवतरित होकर अर्थव्यवस्था के चीरहरण पर चुप न बैठने का दावा कर रहे हैं, मुझे उनके सम्बन्ध में एक संस्मरण याद आ गया जिसे अब 18 वर्ष बाद मैंने उसे सार्वजनिक करने का लोभ संवरण नहीं कर पाया।

 

मुझे सर्वोच्च न्यायालय के एक परिचित वकील ने वित विभाग के कुछ कागजात सौंपे जिसमें आयकर विभाग द्वारा कुछ प्रमुख लोगों जिनमें सिनेमा जगत के एक मूर्घन्य अभिनेता भी शामिल थे-के सम्बन्ध में आयकर विभाग का आंकलन था। मुझे वह किन्हीं पत्रावलि से निकाल लिया गया दस्तावेज लगा इसलिए मैंने उसे वित्त मंत्री को सौंपना उचित समझा। वित्त मंत्री की व्यवस्तता और अपने आलस्य के कारण मैंने मिलकर देने के बजाय एक पत्र के साथ उसे नत्थी कर उन्हें भेज दिया। इस पत्र को भेजने के तीसरे दिन लखनऊ हवाई अड्डे पर एक अन्य राज्यसभा सदस्य अमर सिंह मिले। कुछ इधर-उधर की बातचीत के बाद उन्होंने कहा भाई साहब आपने मित्र की शिकायत कर दिया। मेरा उनका परिचय पुराना था। मैंने पूछा किस मित्र की। उन्होंने कहा अमिताभ बच्चन। मेरे जेहन से यशवन्त सिन्हा को भेजे गए पत्र की बात उतर चुकी थी। इसलिए पहले तो मैं चैंका फिर कहा अरे मैंने शिकायत नहीं की है मुझे कुछ कागजात मिले जिसके सार्वजनिक होने पर सरकार की बदनामी होती इसलिए मैंने उसे वित्त मंत्री को भेज दिया। मैंने उनसे यह भी कहा कि अमिताभ बच्चन आपके मित्र हैं तो मेरे मित्र के दामाद भी हैं। उनके स्वसुर स्व. तरूण भादुड़ी पत्रकार थे और उनकी लखनऊ में नियुक्ति के समय मेरी अति घनिष्ठता थी। हवाई जहाज में बैठने के घोषणा हो गई थी इसलिए हम अन्य लोगों के साथ उसमें जाकर बैठ गए।

मेरे जेहन से श्री सिन्हा को भेजे गए पत्र की बात उतर गई थी लेकिन अमर सिंह से वार्ता के बाद मुझे कुछ खटका क्यों कि जब मैंने उनसे पूछा था कि यह किसने बताया तो उनका उत्तर था यशवन्त सिन्हा ने। झटका इसलिए क्योंकि तब तक मुझे पत्र की पावती का भी संदेह मौखिक या लिखित रूप से नहीं मिला था इसलिए दूसरे दिन मंगलवार को हुई संसदीय दल की बैठक में मैंने नाटकीय ढंग से बोला। दूसरी बार का प्रसंग फिर कभी। मैंने बोलने के लिए जब हाथ उठाया तो वाजपेयी जी ने आश्चर्य के साथ मेरी ओर देखकर बोलने का इशारा किया। मैंने कहा प्रधानमंत्री जी यदि मैं आपको पत्र लिखूं मुझे उसकी पावती की जानकारी भी न मिले और सम्बन्धित पक्ष को उसके बारे में पता चल जाय तो मेरी क्या स्थिति होगी। वाजपेयी जी ने चकित होकर कहा-मेरे पास तो कोई पत्र नहीं मिला। पत्र के मिलने का संज्ञान लेने में वाजपेयी जैसी तत्परता मैंने किसी अन्य नेता में नहीं पायी। उनमें भी जिनको मैं बहुत निकट माना जाता था। जहां वाजपेयी जी आश्चर्यचकित थे, वहीं अन्य सांसद स्तब्ध। ऐसा आरोप लगाने का दुःसाहस देखकर। मेंने कहा प्रधानमंत्री जी मैंने तो केवल उदाहरण के लिए आपका नाम लिया है क्योंकि यह मामला आपके ही एक मंत्री से सम्बन्धित है। कौन पूछने पर मैंने वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का नाम लेने के साथ पत्र के साथ संलग्न कागजात और अमर सिंह के साथ हुई वार्ता का ब्यौरा सुना दिया। बैठक की चुप्पी तोड़ते हुए यशवन्त सिन्हा ने कहा मैंने पावती भेज दिया था। दो राजनाथ सिंह हैं हो सकता है वह दूसरे के पास चली गई हो। मैंने कहा-उसकी प्रतिलिपि ही भेज दीजिएगा। श्री सिन्हा उसके बाद भी कुछ महीने वित्त मंत्री रहे लेकिन न तो मुझे पावती या दूसरे राजनाथ को भेज दी गई पावती की प्रतिलिपि ही मिली। वाजेपयी ने तत्काल बैठक समाप्ति की घोषणा कर सदस्यों में चल पड़ी झुंझुलाहट पर विराम लगा दिया।

 

मैं इस घटना का उल्लेख न करता यदि 15 मिनट के भीतर दूसरी घटना न घटी हुई होती। संसदीय सौंध जहां बैठक हुई थी वहां से चलकर राज्यसभा की कार्यवाही में शामिल होने के लिए मैं उसकी लान में पहुंचा तो देखा अमर सिंह और यशवंत सिन्हा आपस में बात कर रहे हैं। मुझे देखकर अमर सिंह लपककर मेरे पास आये और बोले भाई साहब मैंने यशवंत सिन्हा का कहां नाम लिया था, मैंने तो कहा मुझे कुछ अफसरों ने बताया है। मैं इस प्रसंग को आगे नहीं बढ़ाना चाहता था फिर भी हंसकर बोला अमर सिंह जी अभी जो कुछ मैंने देखा है उसे बाद भी किसी और सबूत की जरूरत है। कुछ दिन बाद मारीशस में कंपनी खोलकर मनी लांडरिंग का धंधा चलाने वालों का भंडाफोड़ हुआ। जसवंत सिन्हा विदेश मंत्री बनाए गए और जसवन्त सिंह वित्त मंत्री। अमर सिंह आज राजनीतिक हाशिए पर भले ही लगते हों, लेकिन एक लंबा काल रहा है जब उनकी राजनीतिक व्यवसायिक घरानों और वालीवुड के सितारों में पैठ और पकड़ के कारण अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना घटित हुई है और तरक्की के लिए लालायित उनसे नजदीकी पाने की होड़ करते थे।

 

इस घटना के कुछ वर्ष बाद से लखनऊ में कईबार एक परिचित के आवास पर भोजन के समय मेरी सिन्हा जी से भेंट हुई लेकिन कभी किसी प्रकार की चर्चा नहीं हुई। मेरी ओर से चर्चा करने का सवाल ही नहीं था और सिन्हा जी ने संभवतः इसलिए नहीं किया क्योंकि भोजन में दत्तचित्त होने में संभवतः व्यवधान होता। क्योंकि मैं जल्दी सोने वाला हूं इसलिए भोजन के बाद की होने वाली चर्चा के लिए मैं कभी रूका नहीं।

 

यशवंत सिन्हा आईएएस थे। चन्द्रशेखर के सानिध्य से राजनीति में आये थे। उनकी सरकार चले जाने के बाद भाजपा में शामिल हो गए। बिहार में वे विधायक दल के नेता, पार्टी अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के उपाध्यक्ष, वित्त एवं विदेश मंत्री बने तथा मनमोहन सिंह की सरकार के दसवर्षीय कार्यकाल में भाजपा के पक्ष को प्रभावी ढंग से संसद में उठाकर सरकार की आलोचना करने वालों में आग्रणी रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उनके बजाय उनके पुत्र जयंत को टिकट मिला, जो अपनी योग्यता के कारण केंद्र में पहले वित्त और अब नागरिक उड्डयन विभाग के राज्यमंत्री हैं और अपने शालीन स्वभाव से सभी को प्रभावित करते हैं। भाजपा ने 2014 में 75 वर्ष का आयु प्राप्त लोगों को विश्राम देने की नीति अपनायी जिसके तीन अपवाद बने चुनाव में उम्मीदवार बनने के रूप में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और शांताकुमार। वे आज भी सांसद हैं और पार्टी के निर्धारित रीति के मुताबिक अपने द्वारा लगाए गए पौधे को पुष्पित और पल्वति होते देख रहे हैं। जसवन्त सिंहा इन तीनों के समान न तो खांटी जनसंघी हैं और न ही मूलभूत नीतियों के प्रति आस्थावान। उनकी प्रतिबद्ध इसी प्रकार के अन्य लोगों के समान अवसर की उपलब्धता पर निर्भर इसलिए नहीं कही जा सकती क्योंकि वे आर्थिक नीतियों के आलोचक हैं। लेकिन कश्मीर के जिन अलगाववादियों को भाजपा के घोर विरोधी भी शह देने में हिचकते हैं अभी मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांगे्रसी प्रतिनिधिमंडल ने भी उनसे मिलना उचित नहीं समझा। उनसे जाकर मिलना और उनकी वकालत करना इस बात का प्रमाण है कि वे किसी प्रतिबद्धता से नहीं मसलहतन पार्टी में आये थे और हैं। भाजपा में एक सांसद हैं जिन्होंने जनसंघ से राजनीति शुरू की थी और अपने ज्ञान के अतिरेक में शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ जहर उगलने में अशोभनीयता की इन्तहा करने के लिए विभिन्न दलों के मंच पर अभिनय करने के बाद फिर लौट आये हैं। यशवंत सिन्हा वैसे नहीं हैं। वे आधा दर्जन दलों का अनुभव लेकर भाजपा में शामिल हुए। दोनों प्रकार के लोगों ने भाजपा में जुगाड़ से पद प्राप्त किया है। ऐसे जुगाड़ियों ने पद पाने से वंचित होने पर कई बार नंगा नाच मचाया है लेकिन आज भी जुगाड़ियों का महत्व कम नहीं हुआ है। (लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद व वरिष्ठ स्तम्भकारर हैं)

 
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