लखनऊ, (हि.स.)। जमाखोरों पर लगाम लगाने के लिए कृषि विभाग सक्रिय हो गया है। व्यापक इंतजाम के साथ वह इस दिशा में लगातार अग्रसर होने का दावा कर रहा है। उत्तर प्रदेश में दालों के बाजार की निगरानी करने वाली संस्था यूपी कृषि विपणन एवं विदेश व्यापार, मंडी परिषद के मुताबिक सरकार के आयात पर रोक लगाने के फैसले से उन किसानों को ज्यादा फायदा होगा, जिन्होंने अरहर का स्टॉक रखा होगा।
विश्व खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार उत्तर प्रदेश में देश की कुल दालों का 16 प्रतिशत उत्पादन होता है। इस तरह यूपी देश में अरहर की खेती और उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।
उप्र कृषि विपणन एवं विदेश व्यापार, मंडी परिषद के सह निदेशक दिनेश का कहना है कि किसानों ने इस बार दालों की खेती कम की है, लेकिन दालों में अरहर सबसे अधिक बोई गई। इसलिए जिन किसानों ने रबी की अरहर का स्टॉक रखा होगा, उन्हीं को सरकार के इस फैसले से फौरी तौर पर फायदा मिलेगा।
कृषि विभाग के अनुसार पिछले वर्ष 2015-16 में अरहर की बुवाई का क्षेत्रफल 3.38 लाख हेक्टेयर हो गया था। इससे उत्साहित होकर इस वर्ष कृषि विभाग ने अरहर दाल की बुवाई का लक्ष्य 3.35 लाख हेक्टेयर रखा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी दालों का आयात बंद किए जाने से अगले वर्ष बाज़ारों में आने वाली अरहर दाल पर किसानों को अच्छे दाम मिल सकेंगे।
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. नरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि सरकार अरहर दाल के आयात को बंद कर रही है, यह किसानों के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। भारत में दलहन फसलों की खेती करने वाले किसानों के पास दाल उत्पादन की बड़ी क्षमता है, लेकिन उन्हें पर्याप्त घरेलू बाज़ार न मिल पाने से हमेशा यह घाटे का सौदा रहता है। विदेशों से आयात बंद हो जाने से अब घरेलू दाल का बाज़ारों में उचित मूल्य मिल पाएगा।
कानपुर के चंद्र शेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक (दलहन) डॉ. मनोज कटियार ने बताया कि पिछले दो वर्षों से देश के दलहनी बाज़ार में विदेशी दालों की भरमार होने से दालों के बाज़ार भरे रहते थे। इससे स्थानीय किसानों को दालों के अच्छे दाम नहीं मिल पाते थे। अरहर का आयात बंद किए जाने से अब अरहर दाल के घरेलू व्यापार को और मजबूती मिलेगी और किसानों को वाज़िब दाम भी मिलेंगे।
कानपुर भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान निदेशक डॉ. नरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि भारत में दलहन किसानों को पर्याप्त घरेलू बाज़ार न मिल पाने से यह घाटे का सौदा रहता है।