नई दिल्ली, (हि.स.)। चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक सर्वेक्षण भाग-2 को शुक्रवार संसद में पेश किया गया जिसमें कहा गया है कि जीएसटी को लागू करने से जुड़ी चुनौतियों, कृषि ऋण छूट और रुपये की मजबूती के चलते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि दर 6.75-7.5 फीसदी हासिल करना पहले से मुश्किल होगा।
सरकार का कहना है कि वित्त वर्ष 2018 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रहेगा, वहीं पिछले वित्त वर्ष 2017 में यह 3.5 फीसदी था।
वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार को छमाही आर्थिक समीक्षा में ये जानकारी दी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2016-17 के लिए पहला आर्थिक सर्वेक्षण 31 जनवरी, 2017 को लोकसभा में रखा था। आज प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में फरवरी के बाद अर्थव्यवस्था के सामने उत्पन्न नई परिस्थितियों को रेखांकित किया गया है। यह पहला अवसर है जब सरकार ने किसी वित्तीय वर्ष के लिए आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट दो बार पेश की है।
सर्वेक्षण के अनुसार मौद्रिक नीति को और अधिक सरल बनाने की काफी गुंजाइश है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि ‘अर्थचक्र’ के साथ जुड़ी परिस्थितियां संकेत दे रही हैं कि रिजर्व बैंक की नीतिगत दरें वास्तव में स्वाभाविक दर (आर्थिक वृद्धि की वास्तविक दर) से कम होनी चाहिए।
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम द्वारा तैयार किए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि अपस्फीति की आशंकाएं, खेती के राजस्व पर जोर, गैर अनाज खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट, कृषि ऋण छूट, वित्तीय कसने और बिजली और दूरसंचार क्षेत्र में गिरावट अर्थव्यवस्था पर बोझ बन रहे हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी), ऋृण प्रवाह, निवेश और उत्पादन क्षमता के दोहन जैसे अनेक संकेतकों से पता लगता है कि 2016-17 की पहली तिमाही से वास्तविक आर्थिक वृद्धि में नरमी आई है और तीसरी तिमाही से यह नरमी अधिक तेज हुई है।
आर्थिक सर्वे में अर्थव्यवस्था में सुधार की दिशा में सरकार की ओर से उठाये गये कदमों का भी जिक्र किया गया है। इसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करना, एयर इंडिया का निजीकरण करना, डूबते ऋणों से निपटने व बैंकों की बैलेंस शीट की समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम उठाना शामिल है।